कल शाम में पता चला की अभी फिर से एक लड़ाई शुरू हो गयी है, मेरे अपने आप की . एक से थोड़ा रहत मिलता है तो दूसरा शुरू हो जाता है. क्यों ना हो! मैंने जो ७ वर्ष आपने जीवन को अपने इमोशन के साथ जिया. जो अच्छा लगा वही किया. दिल से जिया कोई चालाकी नहीं की. जब चालाकी नहीं की तो आगे चल कर लड़ना तो पड़ेगा ही. क्यों की अभी भी चालाकी नहीं सीखी. ऐसा नहीं है कि मेरे आस पास ऐसे लोग नहीं है . रोज एक नये चालाक और एक नई चालाकी से परिचित होती हू , पर ये है की मेरे बुद्धि को समझ ही नहीं आता. अब बड़ी उलझन है अब इस दुनिया में जहा हर चीज सोच समझ के की जाती है, वही मै काम को तो दिमाक से सोचती हू पर करती बड़े दिल से हू. अब यही शायद गड़बर हो जाती है क्यों की दिमाक वाले लोगो को दिल की समझ तो होगी नहीं, क्यों की दिल की चीज प्यार भी दिमाक से ही वो करते है, तो सारा का सारा अगर गुड़-गोबर नहीं होगा तो क्या होगा. मै आपना माथा नहीं फोदुंगी तो क्या करुँगी. अब जब मै ही जो इमोशन की दुहाई देने वाली कहू...
आज सुबह-सुबह मेरी माँ का फोन आया कि वो नहीं लड़ेंगी ग्राम-प्रधान का चुनाव !! मुझे अच्छा नहीं लगा मेरी माँ का इस तरह लड़ाई के पहले ही अपने सपनो को ख़त्म करना ! मेरे पिता जी सरकारी नौकरी से सेवानिवृत हो कर गाँव में रहना पसंद किये और वहा के लिए दोनों ने यथासंभव कार्य करना पसंद किये! पर मेरी सोच "रंग दे बसंती" से प्रभवित है! अगर अच्छा चाहते हो तो पॉवर में आवों! चाहे वो ब्यवस्था की पहली कड़ी ही क्यों ना हो ! क्यों की सोच सभी रखते है और अपनी सोच को ट्रेन में, बस में, चौपाल में, अपने खाली समय में, दूसरो के सामने अच्छा बनने में अक्सर जाहिर करते रहते है! इससे कुछ नहीं होने वाला ! पर क्या करे मेरी माँ सारा जीवन दूसरो के लिए जीकर भी ग्राम प्रधान के लिए नहीं लड़ना चाहती! वो गाँव में फैले बीमारी - मुर्गे और दारू की पार्टी में शामिल नहीं होना चाहती ! सुबह शाम के बीड़ी पार्टी उसे पसंद नहीं! कितना भी प्रचार कर लो विकास का! जागरूक ...
अक्सर सुना है लोग बदल जाते है, वक्त के साथ, मुझे भी यही लगता था की लोग बदल जाते है.. पर जैसे-जैसे जिंदगी को जी रही हू, वैसे वैसे लग रहा है लोग नहीं बल्कि जिंदगी नया रूप देती है, नया नजरिया देती है, जीने के लिए, लोगो को जानने के लिए! इसलिए लोग बदले नजर आते है! लोग पहले से ही ऐसे ही थे और है ! बस आपका परिचय अभी हुआ है! हा इसी से जिंदगी का नयापन हमेशा बना रहता है. हर मोड़ पे एक नया रूप. नयी पहचान खुद की और लोगो की. इधर बिच कुछ नए रूप से पहचान हुई, हा ये परिचय मेरे जीवन में पहला परिचय था.. पर ये बहुत ही खुबसूरत परिचय है. जिंदगी से कमिटमेंट हो रहा है ... इसके बाद सब बदल गया क्यों की कमिटमेंट जो बदल गयी थी.. (पहले कमिटमेंट लोगो से थी अब लाइफ से है .. जिंदगी के हर पह्लू से है ...इसे इसके उदेश्य को जानना है और इसको पाना है) एक मजे की बात जब से मुझे जिं...
वाह क्या बात है इतने अच्छे विचार और शब्द कहा से लाती है | आप को भी दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये |
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