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"चुस्की ले तो मनवा फेंटास्टिक हो जाये "

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सुबह उठते  ही  अपने  पसंद के काच के ग्लास में अदरख वाली चाय मिल जाये ... और उसे भजन के साथ चुस्की ले कर पी जाये , फिर पेड़ो को पानी दे सूरज के साथ आख मिचौली न कर लो तब तक न सासों में ताजगी ना पुरे दिन के लिए जीवन रस. बड़ा नीरस सा लगता है दिन जैसे सुखी काठ जिसमे  कोई रस ही नहीं  और रस नहीं तो स्वाद कैसा ? इधर बीच इसकी  महत्ता का पता चला! पता क्या चला मै कहने-सुनने में वो भी जिंदगी के रस के मामले में ज्यादा  विश्वास  नहीं करती जब तक मै खुद ना अनुभूत कर लू. आप कह सकते हो ये मेरे में बहुत बड़ा लोचा है! पर क्या कर सकते है! कुछ भी नहीं! मै खुद लाचार हू.. क्यों की कई बार सुधरवादी आन्दोलन में मुझे भी मेरे अपनों ने सुधारने की  बड़ी कोशिश की पर असफल हो जाते है..! पर एक  बड़े राज की बात बताती हू इसमें अपना ही मजा है - सोमरस जैसा ! हमेशा ताजा तरीन बने रहने का एहसास... नए स्वाद का एहसास..! आपके रस स्वाद का विस्तार होता है ! जब आप अपने आप को जीते है तो आप दो रस का स्वाद लेते हो - १-एक तो उसपर चलने की प्रक्रिया का स्वाद जो आप ही चख सकते हो ! २- दुसरे उस पर चलने के बाद परिणाम के मिलाने का स्वाद...

तेरी प्रभुताई तो तभी जचती है जब तू भी मुझे अपने दिल में रखता !!!!!

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कल कबीर को सुन रही थी याद आया गुजरा जमाना कि कैसे ये मेरे में उतर गए और मुझमे ही मिल गए ! कबीर तुलसी और सूरदास इन तीनो को बचपन से पढती आरही थी पर इनको १०वी कक्षा से समझना शुरू किया था और ग्रेजुएट होते होते इनमे रमने लगी थी ! कबीर तो मेरे जीवन के मार्ग दर्शक बन गए. कितनी अजीब बात है बिना आडम्बर के महाराज और महिमामंडित गुरु देव की पाखंड से दूर बिना गुरु दक्षिणा  लिये ...लाग-लपट रहित, छल-छ्दम से परे जीवन का रस  दे गये! तुलसीदास जी मुझे थोड़ा कम  ही रमते, पहले भी आज भी ! इसलिए नहीं की उनकी महत्ता कम है! कबीर की दोहावली और सूर के पद इक्के - दुक्के घरो में ही मिलेंगे पर ' राम चरित मानस' तुलसी दास जी की रचना घर घर में मिलेगी ! मेरे पास भी है ! उसके कुछ दोहे गाने मुझे भी पसंद है ! पर यहाँ बात महनता की नहीं है बात यहाँ भाव की है! तुलसीदास जी ने दास भाव से अपनी भक्ति को रखा है और इसलिए मुझे वो भाव जचता ही नहीं और रमने की बात में सूरदास जी बाजी मार गए ! क्यों की सूर की भक्ति भाव सखा है! कैसा छोटे बड़े का भेद ? तुम भगवान तो मै भक्त ! भक्त के बिना भागवान कैसा ? अधिकार भाव ! कैसे

दिल तो बच्चा है जी!!!!!

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दिल को सहारा  चाहिए मन को किनारा!! दिल सहारे में डूब मुस्कराता है मन किनारे के लिए जाल बिछाता है! दिल की दुनिया अपनी होती है मन की तो ठोक-ठाक  के  बसाई जाती है ! दिल जानता भी नहीं क्या अच्छा है क्या बुरा मन हर बार तौलता है क्या और कितना भला !  दिल का तार  धरकन से जुड़ा मन तो  मस्तिस्क के  उलझन में पड़ा  ! दिल में खोये  तो........ आप किसी के और आपका कोई हो गया मन में खोये तो औरो का  क्या.... आप ही अपने ना हुए !  दिल जब भी धड़का तो  दुआए निकली है .. जो अक्सर दूसरो से ही जुड़ी है मन जब भी दौड़ा  तो  तमन्नाये निकलती है ..... जो अक्सर अपने सुख से जुड़ी होती है ! दिल का सब  गवा ...उफ़ ना किया मन का गया तो उसमे घाव बन गया ! हे प्रिये मैंने तुझे दिल से और तुने मुझे मन से जोड़ा इसलिए तू मुझसे दूर हो कर भी है मुझ में ही छुपा  ! और मेरे दिल के तरानों  से है बंधा ! तू मत तौल मेरे दिल को अपने मन के भार  से जब भी तौलेगा  मेरा दिल जमी को ही छुएगा !!!!! विनीता सिंह                      सम्पादक - आपका सारथि