आपकी जन्म भूमि की मिटटी को आपसे बहुत प्यार है ! !

ये अंपने जन्म स्थली में बिताये हुए तीन दिन की उर्जा ही है जो फिर से आयी हुई चुनौतियों में भी मुझे शांति  और सकारात्मक सोच दे रहे है !
मेरी खुशिया इमोशन और प्यार से ना जाने कितनी बढ़  जाती है, कई दिनों तक उसका नशा मुझे जीवंत बनाये रखता है ! अब आप सोच रहे होंगे वो तीन दिन मैंने कहा व्यतीत किये! तो इस वर्ष फुल्ली मस्त दशहरा अपने गाँव में मनाया ! मेले का पैसा भी बटोरा और अपना बटुआ खाली भी किया क्यों की अब मै सिर्फ बेटी ही नहीं बुआ और मौसी   भी हू ! वो सब  जिया जो अब के बच्चो के लिए आश्चर्य  है क्यों की मेरी पीढ़ी और आजकी पीढ़ी में १० वर्ष कि  दूरी है !
और ये १० वर्ष की दूरी मात्र हमारे शहरो में ही हमे अपनों से दूर नहीं कर दिए है, बल्कि गाँव की सामुदायिकता को भी पलट कर रख दिया है! जरूरतों और प्रगतिशीलता की होड़ वहा भी लगी हुई है! इस लिए वो सब आपको मिलेगा जो आप शहर में जीते है! और वो सब नहीं मिलगा जो आप १० वर्ष  पहले पाते थे, जिनके लिए  बच्चो कि छुट्टियों होते ही भाग कर अपने गाँव जाते  थे !
हमारे दादा दादी ने हमें सारे रिश्तो का प्यार देने का ध्यान रखा और बड़े चाचा - छोटे चाचा और बड़ी बुआ- छोटी बुआ सभी का प्यार पाने के लिए ८ बच्चो को जन्म दिया! कितने मजे ! पर अब ये जनसख्या नीति ने  सब गड़बड़  कर दिया. अब किसी के चाचा नहीं तो किसी के बुआ नहीं! और जब ये रिश्ते नहीं तो फिर वो बुआ चाचा का प्यार क्या होता है  और उस प्यार को  दिखा कर मेले के लिए  पैसे बटोरने की कला भी चली गयी ! पर मैंने इस कला के बीज  बच्चो में बो  दिए कि कैसे शाम तक मेला के लिए पैसे बटोरते है ! हुआ ये कि मैंने अपने माँ पिता और चाचा लोगो से वैसे ही पैसे मांगे जैसे आज से १० वर्ष पूर्व जिद किया करते थे ! और बच्चो को सिखाया भी कि इसमें  कितना मजा आता है!
शाम की तैयारी मेला मस्ती और सुंदर अच्छे कपड़े पहन कर तैयार!
कुल २४ लोग!
४ वर्ष से २४ वर्ष की झुण्ड !
एक बहस भी शुरू की कि रावन को क्यों नहीं जलाना चाहिए !
उनके लिए ये बात बहुत ही गलत थी !
पर शुरू तो हो चूका है एक और तरीके से सोच का !
मुझे यही तो करना था !

घर वापस कल  की तैयारी के साथ ! घर जा कर अपनी  माँ के साथ बात करने का पूरा मसाला मिल ही चूका था !
और कल दोपहर में तैयार हो कर गाँव घूमना  है, सारी नई दुल्हन को देखना है और उनसे बाते भी करना है !  पूरा एजेंडा तैयार !
दोपहर १२ बजे फिर २४ लोगो  का समूह !  अब गाँव में भी लोग आने वाले  का स्वागत जलपान से नहीं , चाय से करते है ! गुड़ और  गट्टा गायब हो चूका है ! पर हमने कई जगह मांग कर भी खाया !
मजा आया और बच्चो के लिए तो ये सब  किसी उत्सव से काम नहीं था !
गाना भी गाया फोटो सेशन भी हुआ !
दोपहर से शाम होने वाला था और शाम खेत जाने की भी प्लानिंग थी !
इसलिए घर जल्दी पहुच कर खाने की तैयारी भी कर लेनी थी !
कोई आलस नहीं,  गजब का उत्साह !
और फिर आगया शाम का ७ बजे !
ये झुण्ड फिर होली-ठिठोली करती हुई  शिवान में दिख  रही  थी ! बच्चो में उत्साह था की उन्होंने अपने बुआ के वक्त को जिया ! और मेरे में उमग था की बिना किसी ताम झाम के मैंने इतना कुछ पा लिया था कि पूरे एक वर्ष कोई कमी नहीं !
और कुछ जोश कि बहुत कुछ बदल कर भी अभी भी उर्जा नहीं बदली है, आत्मा वही है उसे आवाज देने कि जरुरत है !
और हम जो सपने देखते है आपनी जन्म भूमि के सुख के लिए, उसमे कुछ  तो कर सकते है ! आपका जाता क्या है आपको मिलता ही मिलता है! एक नई जोश अपने सपनो को साकार करने का! धरती से जुड़े रहने का एहसास कितना मन को सुकू देता है अगर आप इसे महसूस  करना चाहते है तो  किसी दूर देश ली प्लानिंग कर पैसे बर्बाद करने कि जगह ४दिन आपनी धरती पर बिता कर आओ आपको फिर से जीवंत बना देगा !

हा आपकी जन्म भूमि की मिटटी को आपसे बहुत प्यार है !

टिप्पणियाँ

  1. बहुत भावनात्मक | हा इस बार मुझे भी बनारस जा कर ऐसा ही भवनात्मक जुड़ाव महसूस हुआ क्योकि मन में ये एहसास था की शायद ये मेरी आखरी जन्मभूमि की यात्रा हो अब पता नहीं कब यहाँ आना हो | लिखते रहा करो थोडा समय निकाल कर |

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