सामुदायिकता मानवीयता से कभी भी बड़ी नहीं होती (Honor killing)

        आज हर न्यूज़ चैनल पर  Honor killing के खबर को किस्सों की तरह परोसा जा रहा है. समस्या गंभीर - मिडिया के लिए खबर. इन खबरों का परिणाम क्या? शायद कुछ दिनों में दूसरी Honor killing  की खबर सुनने को मल जाये. और  सभी राजनितिक पार्टिया चुप.
शिला दीक्षित को कहते सुना की आज के समय में ऐसी घटनाओ  का होना आश्चर्य है. अब आप भी क्या करे आप को तो भारत का विकास दिल्ली  के मेट्रो के विकास की तरह नजर आता है. आप महानगर  में रहती है आपको भारत के गावो और समुदायों की सामाजिक समस्या से कहा सरोकार होगा?
आपके नजर में महानगरो के  इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास से सारे भारत का विकास हो गया. आपको कहा पता होगा की इस  विकास की आंधी में सामाजिक विकास की धज्जिय उड़ रही है !!
आप अमेरिका से बिसनेस करने के लिए तो आप बड़ी से बड़ी इमारत बनाने को तैयार है पर आप को कहा पता होता है आपके आपनो का क्या हाल हो रहा है !
युवा समाज को इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुबिधा आपने दे दी, पर उनको  अपने आप  को जीने के लिए सुबिधा दी ?
भारत की सरकार धर्म - जाती और अन्य सामाजिक संस्थाओ में हस्तक्षेप करने में हमेशा बचाती रही है!
इसका दो कारण समझ में आता है -
 १- क्यों की ये परम्परागत रूप से पीढ़ी  दर पीढ़ी  आपने आप  बनती और बिगडती आरही है. इनमे अचानक से या एक प्रयास  से परिवर्तन करना कठिन है.  इसमे  शिक्षा के माध्यम से ही मानवीय रूप लाया जा सकता है, जिसमे पीढ़िया लग जाती है. जिसे सरकार अक्सर कोशिश का दिखावा कर पल्ला झाड़ लेती है.
२-  राजनितिक वोट बैंक के लिए जब तक कोई आसार नजर नहीं आये तब तक इसमे उसे पंगा नजर आता है .
              जिन्दगिया ख़त्म हो रही है और नये कानून को लाने की बात की जारही है. आरे सोये हुए स्वार्थी लोग जो कानून है उसी से पहले जिन्दगिया तो बचाओ फिर अपने कानून तुम लाते रहना. कानून ने अभी तक क्या उखाड़ लिया है जो आगे भी कुछ ज्यादा उखाड़ लेगी. हर मानवी अपराध के लिए कड़ा कानून है और वो सारे अपराध बड़े आराम से किये जाते है , करने वाला शान  से सुबिधा संपन्न समाज में घूमते  है. जो अपराधी है उन्हें कोई डर नहीं, पर जो अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से शांति से जीना चाहते है उनके लिए एक सॉस भी मुश्किल लगती है. क्यों?
ऐसा लग रहा है  भारत के आम लोगो के जिन्दगी से यहाँ की सरकार और शासन व्यवस्था  को कोई मतलब नहीं है, मतलब है तो  सिर्फ अपने सोसेबजी से और झूठी विकास के दिखावे से.
क्या कारण है कि स्वतंत्रता पूर्व  ना जाने कितनी सामजिक बुराइया थी और हमारी  परतंत्रता ने भी उनका खिलाफत करने से सामाजिक और वौचारिक सुधारको  को रोक  नहीं पाई.
शायद मानवीयता के लिए लड़ने का एक जब्जा था.
उन्हें कोई राजनितिक स्वार्थ का ढोंग नहीं था.
रूढ़ियो से लड़ना  मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं.
और आपके पास तो कानून और सत्ता दोनों है. फिर आप इस  तरह से कैसे सो सकते है जहा हमारे युवा  पीढ़ी की जिंदगी खतरे में हो! युवा  भारत की  दुहाई देने वालो सुनो-- तुह्मारे इच्छा शक्ति की जरुरत है.
आपने जिन्हें हमारा  रक्षक बनाया है वो भी भक्षक बने हुए है. आप अब तो उठो! इसमें राजनितिक स्वार्थ मत देखो और खुशहाल जिन्दिगियो को ख़त्म हने से बचाओ.
क्यों  कि सामुदायिकता मानवीयता से कभी भी बड़ी नहीं होती.
आप से निवेदन है कि नये कानून तो आप बनाते रहे पर उसके पहले आप एक और जिंदगी ख़तम होने से रोके!





टिप्पणियाँ

  1. मेरे विचार मैं इसे तो किसी भी तरह से ओनर किल्लिंग नहीं कहा जाना चाहिए.
    ये लोग किस सम्मान की बात कर रहे हैं, खून करने के बाद क्या इनका कोई सम्मान बचा रह गया हैं|
    और ये अगर प्यार करने से किसी को रोकना और उसका खून करना सम्मान की बात समजते हैं तो ये तो कही से भी हमारे सम्मान के काबिल ही नहीं.
    इन लोगो के इस काम को ओनर किल्लिंग का नाम देना ही हुम्मारे लिए सरम की बात हैं.

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

“मनोविकारक युग”

ये ज़िन्दगी गले लगा जा ......

कमिटमेंट जीवन के साथ