बच्चो के मन को समझे और फिर अनुकूल रूप दे.

देश की समस्या और आम जीवन की समस्या से भी तेज एक ऐसी समस्या पुरे देश में फैलाती जा रही है जिसमे जिंदगी ही खत्म होने के कगार पर है. और हम कुछ भी नहीं कर रहे है. हर दिन एक जिंदगी अपने आप को ख़त्म कर रही है या ख़त्म कर दिया जा रहा है। ये क्या है ? क्या ये कोई आपस की दुश्मनी है या फिर आम अपराध की प्रवृति , नहीं ये वो कारन नहीं जिन से जिन्दिगीय यू ही समाप्त हो रही है, ये छात्रो में फैलने वाली वो मानसिक स्थिति है जिसमे वो किसी भी हालत में आपने आप को आगे रखना चाहते और इस में सफल ना होने पर जान लेने और देने, दोनों में उन्हें संकोच नहीं हो रहा!!!!! क्यों?
समाज को किस तरफ जारहा है?
किस भविष्य की तरफ इगित कर रहा है.?
क्या ये छात्रो कि मानसिक बीमारी है या हम उन्हें दे रहे है ये मानसिकता?

हा शायद हमी तो दे रहे है !!!!!
हम उन्हें मात्र सफलता के मापदंड पर प्यार और स्वीकार कर रहे है.
उनकी खुद की भावनाओ और जरुरत को नजर अंदाज कर मात्र अपनी उम्मीदों पर खरा होने के लिए तैयार कर रहे …………. आखिर कब तक ??????
और ये कब तक के परिणाम आने की शुरुरात हो चुकी है, "अपने आप को साबित ना कर पाने की नाउम्मीदी पर आपने आपको खत्म कर लेने का सबसे आसन तरीका".
कृपया अब तो जानिए आप अपने बच्चे को, उसे वो सब कुछ दीजिये जो उसे उसका सबसे अच्छा रूप दे सके, पर अपने सफलता के सामाजिक मापदंड के उम्मीदों को मत थोपिए.
हर पल आपने बच्चे को आपका उसके साथ रहने का एहसास देते रहे , चाहे उसकी सफलता हो या असफलता. आज का बच्चा जितना अकेला है उतना कल का नहीं था।
अफ़सोस और संताप कि जगह उसके हौसलो को नई चुनौती और प्रयास के लिए बुलंदी दे।

इमोशन को समझे , सबकी जरूरते अलग होती है, पर प्यार सबके लिए ज्यादा से ज्यादा हमेशा चाहिए होता है ।

टिप्पणियाँ

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  2. बच्‍चे खेल खेल में जितना कर लेते हैं .. दबाब देने पर नहीं कर सकते !!

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