मेरे समझ का सत्य
बदल रही है सारी दुनिया, लोग कह रहे है. यही हमेशा सुनने में भी आ रहा है.
दुनिया कैसे बदल रही है?
क्या धरती का आकर बदल रहा है?
या फिर आसमान का रंग नीले से लाल दिखाने लगा है?
या कही लोगो का रंग रूप तो नहीं बदल गया है मेरे इस धरती पर आने से पहले!!
पर ऐसा कैसे हो सकता है!! मेरे दादा जी की बचपन की फोटो तो मेरे ही तरह है!!!!!
ऊह्ह समझ में नहीं आता कि आखिर क्या बदल रहा है!!!
जहा तक मुझे समझ में आता है सब कुछ तो वैसा ही है जैस हजारो वर्ष पहले था .
किसी से पूछने पर जबाब मिलता है कि - बुद्धू ये नहीं हम बदल रहे है!
मन में ख्याल आया - हम बदल रहे है !!!!
हम कहा बदल रहे है!! हम तो वैसे ही है जैसे वर्षो से रहे है!!
फिर आखिर क्या बदल रहा है !!!! कुछ तो है जिसे या तो मै नहीं समझ पा रही या फिर मै समझाना ही नहीं चाहती!!!
अक्सर माँ पिता जी से कहती है - अब ये आप का जमाना नहीं है!!!!!
भाभी को भाई से कहते सुना है सुब कुछ बदल गया पर आप नहीं बदलेंगे!!
पर मेरे लिए तो कुछ भी नहीं बदला!!!
जिसे लोग बदलना बोलते है वो तो सुब कुछ 1000 वर्ष पहले भी था.
कुछ आदर्श को जीते थे तो कुछ आपनी इच्छा को!! अब वो गलत है या सही वो तो वक्त परिधि ही बता सकता है.
रामायण , महाभारत, को पढो या फिर गीता के पाठ पढो तो लगता है कि हमें ही तो लिखा गया है और हमारे लिए ही तो है!!
क्या उनको पता था कि हम आज ऐसे होंगे!!!!!! और हमे गीता के पाठ को पढ़ने की जरूत पड़ेगी!!!!!!!
प्रेमचंद को पड़ती हू तो मुझे मेरे पिता का जीवन नजर आता है!!!!!
अब प्रेमचंद तो मेरे पिता जी को बिल्कुल नहीं जानते थे!!!!!
फिर कैसे लिखा उन्होंने मेरे पिता के जीवन को !!!
मुझे भी वैसे ही प्यार में एहसास हुआ जैसा शरत चन्द्र की नायीका हो हुआ!!!
जीवन में हजार उतर-चड़ाव आये जैसे किसी भी लेखक की नायीका के जीवन में आये!!!!
वो नगर कि पड़ी लिखी भी हो सकती है या फिर गाँव के रुदिवादिता से लड़ती हुई !!!!!!
आखिर वो सारे लोग आज के बारे में कैसे इतना सटीक लिख सकते है क्या उन्हें आज दीखता था!!
शायद नहीं उन्हें हमारे बारे में कुछ भी नहीं पता था!!!
वो अपने वक्त को ही लिखते थे! वक्त और स्थितिया हमेशा एक जैसी ही होती है! बस भूमिका किसी और को मिल जाती है !!!!
तो फिर आज कुछ भी बदल नहीं रहा बस हम अपने जीवन के अनुभव में बढ़ते जा रहे है, इसलिए शायद हमे सुब कुछ बदलने का भ्रम हो रहा है!!!!
परन्तु ये मेरे समझ का सत्य है, हो सकता है आपका नहीं हो !!!!
विनीता सिंह
वी.एस टी फाउन्डेशन
दुनिया कैसे बदल रही है?
क्या धरती का आकर बदल रहा है?
या फिर आसमान का रंग नीले से लाल दिखाने लगा है?
या कही लोगो का रंग रूप तो नहीं बदल गया है मेरे इस धरती पर आने से पहले!!
पर ऐसा कैसे हो सकता है!! मेरे दादा जी की बचपन की फोटो तो मेरे ही तरह है!!!!!
ऊह्ह समझ में नहीं आता कि आखिर क्या बदल रहा है!!!
जहा तक मुझे समझ में आता है सब कुछ तो वैसा ही है जैस हजारो वर्ष पहले था .
किसी से पूछने पर जबाब मिलता है कि - बुद्धू ये नहीं हम बदल रहे है!
मन में ख्याल आया - हम बदल रहे है !!!!
हम कहा बदल रहे है!! हम तो वैसे ही है जैसे वर्षो से रहे है!!
फिर आखिर क्या बदल रहा है !!!! कुछ तो है जिसे या तो मै नहीं समझ पा रही या फिर मै समझाना ही नहीं चाहती!!!
अक्सर माँ पिता जी से कहती है - अब ये आप का जमाना नहीं है!!!!!
भाभी को भाई से कहते सुना है सुब कुछ बदल गया पर आप नहीं बदलेंगे!!
पर मेरे लिए तो कुछ भी नहीं बदला!!!
जिसे लोग बदलना बोलते है वो तो सुब कुछ 1000 वर्ष पहले भी था.
कुछ आदर्श को जीते थे तो कुछ आपनी इच्छा को!! अब वो गलत है या सही वो तो वक्त परिधि ही बता सकता है.
रामायण , महाभारत, को पढो या फिर गीता के पाठ पढो तो लगता है कि हमें ही तो लिखा गया है और हमारे लिए ही तो है!!
क्या उनको पता था कि हम आज ऐसे होंगे!!!!!! और हमे गीता के पाठ को पढ़ने की जरूत पड़ेगी!!!!!!!
प्रेमचंद को पड़ती हू तो मुझे मेरे पिता का जीवन नजर आता है!!!!!
अब प्रेमचंद तो मेरे पिता जी को बिल्कुल नहीं जानते थे!!!!!
फिर कैसे लिखा उन्होंने मेरे पिता के जीवन को !!!
मुझे भी वैसे ही प्यार में एहसास हुआ जैसा शरत चन्द्र की नायीका हो हुआ!!!
जीवन में हजार उतर-चड़ाव आये जैसे किसी भी लेखक की नायीका के जीवन में आये!!!!
वो नगर कि पड़ी लिखी भी हो सकती है या फिर गाँव के रुदिवादिता से लड़ती हुई !!!!!!
आखिर वो सारे लोग आज के बारे में कैसे इतना सटीक लिख सकते है क्या उन्हें आज दीखता था!!
शायद नहीं उन्हें हमारे बारे में कुछ भी नहीं पता था!!!
वो अपने वक्त को ही लिखते थे! वक्त और स्थितिया हमेशा एक जैसी ही होती है! बस भूमिका किसी और को मिल जाती है !!!!
तो फिर आज कुछ भी बदल नहीं रहा बस हम अपने जीवन के अनुभव में बढ़ते जा रहे है, इसलिए शायद हमे सुब कुछ बदलने का भ्रम हो रहा है!!!!
परन्तु ये मेरे समझ का सत्य है, हो सकता है आपका नहीं हो !!!!
विनीता सिंह
वी.एस टी फाउन्डेशन
sundar vichaaron ki saral abhivyakti
जवाब देंहटाएंDHANYBAAD
http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/