इन्सान का खेल

जीवन  शतरंज का खेल
समाज चौपाया
गोटिया इन्सान
ऊँचे से नीचे तक
गोरे से काले तक
खेल कुछ अच्छा
कभी कभी लगता बुरा .
काला  गोरे को मरता है
गोरा काले को!
इसमे कुछ नियम है.
पालन नियति नहीं नियम है,
इन्सान है कुछ हैवान
इन्सान इन्सान को मरता है,
ना कोई गोरा देखता है ना कला
ना कोई बंधन है ना मुहब्बत,
ना कोई नियम , ना कही मानवता
बाते है परमार्थ की,
पर है तो सिर्फ स्वार्थ.

डॉ  विनीता सिंह
वी. एस. टी . फाउन्डेशन

टिप्पणियाँ

  1. अच्छा लिखा है आपने मगर कुछ कमी है उच्चारण मैं.
    जैसे-कला गोरे को मरता है, इन्सान इन्सान को मरता है, ना कोई गोरा देखता है ना कला.
    अरे इतना भी ठीक नहीं है इमोशन के साथ बहना.
    कंट्रोल करो अपने इमोशन पर. ठीक रहेगा......

    जवाब देंहटाएं
  2. Ishwarshaktii jeee
    aap sahi kah rahe hai emotion ko loog hamesha kam karane ki salah dete hai per kya kare mai ese galat hi nahi manati firr kyo kam karana!
    mai aur mera emotion hi to jo mujhe mujhe banata hai!!!!!!:)

    जवाब देंहटाएं

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