मै बहू ही नहीं बेटी भी हू !

कल एक बार फिर जिंदगी रोई और इंसानियत का तार तार हो गया . मन में आया कि ऐसा क्या करू कि आगे ऐसी खबर ना सुनने को मिले!!
गाँव से खबर आयी कि एक बहू ने आपनी जिंदगी को रस्सी के हवाले कर दिया!!  घटना  से आहात होने पर पता चला कि वो चार वर्ष से अपने  वैवाहिक  जीवन में मात्र मजबूरियों और समझौतों को जी रही थी. क्यों कि उसका पति निहायत सीधा ( लोगो के अनुसार ) था और आर्थिक रूप से असक्षम था. जिसके कारण वो अपने बड़े भाई और भाभी के दुर्व्यवहार  से आपनी पत्नी को बचा न सका!  इस  बात की खबर पूरे गाँव वोलो को थी. क्यों किउसके मृत्यु पश्चात उसके अच्छे होने और उसके उपर होने वाले जुल्मो की हजार कहानिया आनी शुरू हो गयी.  ऐसा क्यों होता है कि कोई अपनी जिंदगी खत्म कर लेता है तो लोगो में उसके प्रति संवेदना जगती   है. उसके जीवित्  रहते क्यों नहीं ?
आखिर क्या कारण है कि भारत में लड़किया आज भी घुटन  भरी और लाचार जिंदगी जीने को मजबूर है ( भारत महानगरो का नहीं छोटे शहरो और गाओं का देश है ) .  यहाँ मै एक सवाल उठाना  चाहूंगी कि क्या वो मात्र बहू थी किसी गाँव  या परिवार की?
या फिर बेटी भी थी. अगर वो बेटी भी थी तो वो माता - पिता कहा है जो बेटी को एक बार बहू बना कर बेटी से  पल्ला झाड़ लेते है!!!
क्या वो आपनी जिंदगी की समस्याओ  को आपने जन्मदाता  को नहीं बता सकती थी,  कि उसे अपनी जिंदगी खत्म करना ही एक मात्र रास्ता बचा??
इन सरे सवालो का मात्र एक जबाब कि आज भी बेटी को ना जाने कितने संस्कारो से होकर गुजरना होता है जिसमे मात्र यही सिखाते है कि तुम्हारा  घर ससुराल है. वही सब कुछ है. तुम्हारा उसी घर में ख़ुशी ख़ुशी रहना ही तुम्हारा और हमारा दोनों का सुख है.  और ऐसा नहीं हुआ तो समाज में जबाब देना मुश्किल हो जाता है. क्यों कि तुम्हारे सुख के समाचार से हमारी इज्जत है.
 बेटी एक बार  बहू बन कर वापस इस घर में आपने लिए कोई जगह नहीं देखती.  इस लिए नहीं कि उसका कोई अधिकार नहीं होता  बल्कि यही उसे संस्कार दिया जाता है.  पैतृक सम्पति में पुत्र के बराबर अधिकार होने के बावजूद वो अपने लाचार और जलील जीवन से पलट कर वापस आने का सोच ही नहीं सकती क्यों कि उसका परवरिश ही ऐसा हुआ है. वो ना चाहते हुए भी अपने दुःख को छुपा वो झूठी खुशियों को जताती है.
 क्यों?
ऐसा कब तक?
कब तक छदम जीवन का संस्कार देते रहेंगे? या उसका जश्न  मानते रहेंगे.
नहीं अब तो आप अपनी बेटी को बहू के रूप में ख़त्म ना होने दो!!!!! उसे एक अछि बहू और खुशाल जीवन का आवरण ओडने को मजबूर ना करो!!!!!
जिस तरह आपका बेटा विवाहोपरांत  आपका ही बेटा रहता है उसी तरह विवाहोपरांत बेटी मात्र बहू नहीं हो जाती वो बेटी भी है.
आप उसे भी बचपन  में  संस्कार दो कि ये घर और आप उसके उतने ही है जितने उसके भाई के. उसके नाम से उस घर  में कोई ना कोई बस्तु होनी चाहिए जैसे आप अपने बेटे के लिए करते हो. उसके जीवन के सुख और दुःख दोनों में आप उसके साथ है. आप उसे बताये कि वैवाहिक  जीवन उसका सुखी हो ये उनकी कमाना है पर अगर ऐसा नहीं है तो वो अपने  घर वापस आ जाये ,  आगे की सभी मिल कर सोचेंगे.
मात्र ये बाते कहिये ही नहीं ये संस्कार में डालिए.
अगर हर माता - पिता दूसरो की तरफ देखना छोड़ कर, अपने बेटी की तरफ देखे तो निश्चय ही उसके जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है. उसके सुख का ही मात्र गुडगान मत करिए उसके चुनौतियों में भी जी-जान से साथ दीजिये. आपके ऐसा करने से निश्चय ही आपकी बेटी घुटन भरी धुंध से आगे निकल अपने  जीवन के चुनौतियों का सामना कर  खुशहाल जीवन जियेगी.  जिस पर आपको अफ़सोस नहीं गर्व होगा.
बस एक बार अपने बेटी के लड़ाई में साथ तो दीजिये फिर ऐसी दुखद घटना सुनने को नहीं मिलेगा.
मेरी हर इंसान से गुजारिश है जो आपनी जिंदगी खत्म करने की सोचता है- जीवन को ख़तम मत करिये !
चाहे कितनी भी लाचारी हो! वो सरे उपाय ( जतन) करिये जो आपके मन में आता है.
वो सारा हत्कंडे अपनाइए जो आपको समझ  में आता है.
 पर जिंदगी को ख़त्म मत करिये!
और हर माँ- पिता से गुजारिश है कि दुनिया के कारण खुश रहने और दिखाने के डोंग से बहार निकलिये और अपने  बच्चो के ख़ुशी में साथ देकर देखिये कितना  सुकू और गर्व महसूस होगा.
आप अपने आप को बदलिए, सुब कुछ अपने आप बदल जायेगा.

टिप्पणियाँ

  1. saty likhney or saty ko aatmsaat karney ki liye sher ka kalejaa chahiye.

    App badhaii ki paatr hain.

    जवाब देंहटाएं
  2. जीवन एक संघर्स है और हर किसी को इसमे लड़ना पड़ता है चाहे वो बेटा बेटी हो या बहु हा बेटी बहुओं को संघर्स ज्यादा करना पड़ता है लेकिन बिना लडाई किये आप अपनेअनुसार जीवन नहीं जी सकते यदि आप में संघर्स की क्षमता नहीं है तो मनमुताबिक जीवन जीने की इच्छा छोड़ दीजिये | यदि आप ये सोचते है की इस संघर्स में कोई आप का साथ दे तो ये आप की बेवकूफी है माँ बाप भाई बहन पति किसी से भी साथ की उम्मीद आज के जीवन में नासमझी है | क्योकि वो सब भी अपनी लड़ाईयो को लड़ने में व्यस्त है | जहा तक सवाल बेटियों और बहुवो के घुटन भरे जीवन का सवाल है तो उससे भी उन्हें ही लड़ कर बाहर आना होगा उनकी कोई मदद करने नहीं आएगा बस उन्हें अपनी अच्छी बहु बेटी वाली छवि से बाहर आना होगा यदि आप घर के दूसरो के मनमुताबिक काम करे और जीवन यापन करे तो आप अच्छे है उनका कहा नहीं मानेगे तो बुरे है तो आप खुद तय करे की आप को कौन सा जीवन जीना है | बेटियों को खुद अपने भले के बारे में सोचना होगा इसके पहले की कोई और उनके बारे में निर्णय ले और इसके लिए किसी से सहयोग लेने की आवश्यकता ही नहीं है | बेटियों के कमजोर होने का कारण ही यही है की सदा वो दूसरो से सहारे की उम्मीद करती है|सीधी सी बात है यदि माँ बाप समाज की ओर देखते और उसकी सुनते है तो उन्हें देखने दीजिये क्योकि वो जीवन भर वही करते आये है उन्हें उसी समाज में रहना है और उसे साथ ले कर चलना है आप यदि समाज की परवाह नहीं करती तो मत सुनिए उसकी और वही कीजिये जो आप करना चाहती है पर दूसरो से ऐसा करने की उम्मीद मत करीये

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  3. हा और एक बात और अक्सर देखा गया है की पतियों से परेशान पत्निय कई बार पतियों को सबक सिखाने के लिए आत्महत्या करती है की जब पति को पता चलेगा की पत्नी ने उसके कारण आत्महत्या कर ली तो उसे पछतावा होगा या वो अपनी गलती मानेगा या उन्हें याद करके आशु बहायेगा तो ये सिर्फ उनकी सोच है असलियत में ऐसा कभी नहीं होता | एक तो उन्हें ये कभी नहीं लगता की पत्नी उनके कारण परेशान थी इसलिए गलती मानाने का सवाल ही नहीं उठता है फिर पछतावा किस बात का वो तो मरने के बाद भी यही कहते है की उसका तो(पत्नी का ) दिमाग ही ख़राब था खुद ही उलजलूल सोच सोच कर परेशान होती थी और फिर ये बेवकूफी कर बैठी और याद में आशु बहाना तो दूर रहा पत्नी की चिता की आग भुझाने से पहले ही उसके हितैषी उसे ये राय देने लगाते है की उसको तो अभी भी अविवाहित लड़की से दूसरी शादी हो सकती है | इस लिए उन सारी पत्नियों और दुसरे उन लोगों से भी मेरी गुजारिश है की किसी से परेशान हो कर या किसी भी कारन से आत्महत्या न करे आप जीवित रह कर किसी को ज्यादा अच्छे तरीके से सबक सिखा सकते है |

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