न जाने कहा कहा ढूढा और तू मुझ में ही मिला
बड़ा ही आनंदमय एहसास अपने अंदर के सुकू से परिचित होना ! हा मिलता है बड़े पापड़ बेलने के बाद ! पर सारे पापड़ कबूल इस एहसास के लिए ! योग इसलिए नहीं करना पड़ रहा की स्ट्रेस को ख़त्म करना है! संगीत इसलिए नहीं सुनना कि अपने अंदर के उथल पुथल से दूर होना है ! नृत्य इसलिए नहीं करना कि अपने को पाने कि कोशिश करना ! जिसे वर्षो से ना जाने क्या क्या कर के पाने की कोशिश कर रही थी और नहीं कर पा रही थी.....एक झटके में सब बदल गया !!! मन का सुकून ... सुरक्षा का एहसास !!!! जो खुद में ही मिला था पर मृग की तरह ना जाने कहा-कहा और किसमे-किसमे ढूढने का असफल प्रयास करती रही ! कभी माँ-पिता में, कभी साथी में तो कभी प्यार में, तो कभी-कभी जीवकोपार्जन के लिए नौकरी में भी!......पर सब बेकार .....! एक के बाद एक झटको ने मुझे मेरे करीब लता गया और मै नासमझ उन झटको के लिए कुढ़ी ... दुखी हुई... हजार बार रोई... पर मुझे क्या पता था कि ये कड़ीय थी! जो टूट रही थी मेरे को मेरे से परिचय करने के लिए... मेरे सु...