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बच्चो के मन को समझे और फिर अनुकूल रूप दे.

देश की समस्या और आम जीवन की समस्या से भी तेज एक ऐसी समस्या पुरे देश में फैलाती जा रही है जिसमे जिंदगी ही खत्म होने के कगार पर है. और हम कुछ भी नहीं कर रहे है. हर दिन एक जिंदगी अपने आप को ख़त्म कर रही है या ख़त्म कर दिया जा रहा है। ये क्या है ? क्या ये कोई आपस की दुश्मनी है या फिर आम अपराध की प्रवृति , नहीं ये वो कारन नहीं जिन से जिन्दिगीय यू ही समाप्त हो रही है, ये छात्रो में फैलने वाली वो मानसिक स्थिति है जिसमे वो किसी भी हालत में आपने आप को आगे रखना चाहते और इस में सफल ना होने पर जान लेने और देने, दोनों में उन्हें संकोच नहीं हो रहा!!!!! क्यों? समाज को किस तरफ जारहा है? किस भविष्य की तरफ इगित कर रहा है.? क्या ये छात्रो कि मानसिक बीमारी है या हम उन्हें दे रहे है ये मानसिकता? हा शायद हमी तो दे रहे है !!!!! हम उन्हें मात्र सफलता के मापदंड पर प्यार और स्वीकार कर रहे है. उनकी खुद की भावनाओ और जरुरत को नजर अंदाज कर मात्र अपनी उम्मीदों पर खरा होने के लिए तैयार कर रहे …………. आखिर कब तक ?????? और ये कब तक के परिणाम आने की शुरुरात हो चुकी है, "अपने आप को साबित ना कर पाने की नाउम्मीद

इमोशन के साथ एक पल

आप कैसे कह सकते कि आप इमोशन के बिना ही जीना पसंद करते है। आप अपने जीवन के किन्ही उलझनों के कारन अपने आप को इमोशनल न होने पर जोर देकर मात्र अपने आप को संतुष्ट करते है। क्यों कि आपके जीवन का प्रतिपल भाव से ही खुबसूरत बनता है और आपके जाने- अन्जाने वही आपको अच्छा भी लगता है। क्यों नह लगता ?? आप खुश होकर ईश्वर के बाद आपने आप को देखते है, नई सुबह - नई दिन के लिए। अपने आप को सबसे खुबसूरत होने के एहसास तक सवारते है। आप की सुबह कि चाय मात्र दिनचर्या नहीं होती आप उसे बड़े एहसास के साथ पीते है । कोई सोफे पर पैर पसार कर, कोई अपने प्यार के हाथो अलसाईआँखों से बिस्तर में , या फिर कोई टहलते हुए बाल्कनी से चिड़ियों कि चहचाहट और सूरज के फैलते रोशनी को चाय की चुस्कियो के साथ गल्प करते हुए। अगर दिन कि प्रथम चर्या में इमोशन के रंग को घोल देंने पर पल इतना खुबसूरत बन जाता है तो फिर दिन के हर पल में, हर कर्म में घोल दिया जाये तो दिन कितना सुहना और जीवन कितना रंगीन हो जायेगा। एक बार इसे सिर्फ एहसास ही ना करिए बल्कि इसे जी कर जिजिये, आपका हर पल सिख - नख तक पुलकित व आनंद से झंकृत होता रहेगा। नोट - आपके इमोश

इमोशन एक खुबसूरत एहसास

ये ब्लॉग उन लोगो के लिए है जो इमोशोन में विश्वाश रखते है/ ये सत्य है इंसान में इमोशन एक ऐसा भाव है जो उसे सुख और दुःख का अनुभूति देकर जीवन के महत्वपूर्ण होने का एहसास कराता है / पर आज भौतिकवादी दौर में अक्सर लोग इमोशोन को ख़त्म करने कि सलाह देते है कि ना रहेगा इमोशोन ना रहेगा सुख - दुःख / पर लोग कितना ही कोशिश कर ले जब तक इंसान है और जब तक ये श्रिष्टि है तब तक किसी ना किसी रूप में इमोशन रहेगा ही/और फिर क्यों ना हो बिना इमोशोन के जीवन का रूप ही क्या जिसमे सुख-दुःख , प्यार- बियोग, गुस्सा - शांति, ख़ुशी - आश्चर्य ना हो! इस यही तो इमोशोन के रंग है जो जीवन को रंगीनिया देकर खुबसूरत बनाते है, जीवन का एहसास देते है.ये तो बात रही इमोशोन की और ये ब्लॉग उन लोगो के लिए है जो इमोशोन में विश्वाश रखते है, पर कभी ना कभी उन्हें ऐसा लगता है कि उनके इमोशनल होने के कारन उन्हें इस प्रोफेशनल दुनिया में अक्सर ज्यादा दुःख मिलता है. और वो ये सोचने पर मजबूर हो जाते है कि क्या उनका इमोशनल होना उनके स्वयं के लिए अच्छा नहीं है. नहीं ये बिल्कुल सत्य नहीं है, बल्कि सत्य ये है कि लोग आपनी अवसरवादिता को छुपाने के लिए

जीने की कला

मेरे आस पास ऐसे लोग ज्यादा है जो आपने जीवन को जीने में विश्वाश करते है। हा लोगो के अनुसार उनके जीवन में समाज के अनुरूप स्थितिया अवश्य नहीं है, क्यों कि आस पास उनके वो लोग होते है जो अपने जीवन को जीने की जगह समाज को जीने में ख़ुशी रखते है। पर हमें बहुत अच्छा लगता है जब हमारे अंदर एक ख़ुशी की नदी प्रतिपल कलकल छलछल करती रहती है, जीवन की कोई भी स्थिति हो शांति बनी रहती है, जीवन से हमें तब भी उतना लगाव होता है, उतना ही प्यार रहता है जब स्थितिया हमारे अनुकूल नहीं होती है । इस स्थिति में वाही जी सकते है जो आपने आप को जीते है. पर मै उनलोगों की तरफ भी ध्यान देती हू, जो अपने जीवन को ना जीकर, समाज को जीने में आपना संपूर्ण जीवन लगा देते है, अपने और समाज के द्वन्द में ना जाने कितने चहरे को जीते है, और जो उनका जीवन है उसे ना जीकर ना जाने कितने जाने पहचाने लोगो के जीवन को जीते है। जब जन्म और जीवन के बाद अंत सत्य के करीब पहुचते है तो उन्हें लगता है की अरे ये क्या हुआ, मैने तो अभी अपने आप को जिया ही नहीं, पर उस समय कुछ भी नहीं किया जा सकता। हर मनुष्य ये भूलता जा रहा है की जब वो अपनी माँ के गर्भ से इस ध