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ग्राम पंचायत- मुर्गा-दारू पार्टी -यही तो है स्वराज!!!!!!!

आज सुबह-सुबह मेरी माँ का फोन आया कि वो नहीं लड़ेंगी ग्राम-प्रधान  का  चुनाव !! मुझे अच्छा नहीं लगा मेरी माँ का इस तरह लड़ाई  के पहले ही अपने  सपनो को ख़त्म करना ! मेरे पिता जी सरकारी नौकरी से  सेवानिवृत हो कर गाँव में रहना पसंद किये और वहा के लिए दोनों ने यथासंभव कार्य करना पसंद किये! पर मेरी सोच  "रंग दे बसंती" से प्रभवित है! अगर अच्छा चाहते हो तो पॉवर में आवों! चाहे वो ब्यवस्था की पहली कड़ी ही क्यों ना हो ! क्यों की सोच सभी रखते है और अपनी सोच को ट्रेन में, बस में,  चौपाल में,  अपने खाली समय में, दूसरो के सामने अच्छा बनने में अक्सर जाहिर करते रहते है! इससे कुछ नहीं होने वाला ! पर क्या करे मेरी माँ सारा जीवन दूसरो के लिए जीकर भी ग्राम प्रधान के लिए नहीं लड़ना चाहती!  वो गाँव   में फैले बीमारी -  मुर्गे और दारू की पार्टी में शामिल नहीं होना चाहती ! सुबह शाम के बीड़ी पार्टी उसे पसंद नहीं! कितना भी प्रचार कर लो विकास का! जागरूक  कर लो आगे के कार्य के लिए, पर चार दिन के झूठी खुशामदी में  लोग शौक से अपने ग्राम का ५ वर्ष दे देते है!  आपको पूरा माजरा सुनती हू... आज के  ग्राम पंचाय

Emotion per Atyachar: प्यार के लिए !!!!!!

प्यार के लिए !!!!!!

प्यार के लिए !!!!!!

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प्यार अगर मोती है तो, मै सीप बनना चाहूंगी ! प्यार अगर एहसास है तो, मै आभास करना चाहूंगी! प्यार अगर धड़कन है तो, मै हिय बनना चाहूंगी! प्यार अगर ज्योति है तो, मै दीप बनना चाहूंगी! प्यार अगर खुश्बू है तो, मै फूल बनना चाहूंगी! प्यार अगर समंदर है तो, मै गहराई छूना चाहूंगी! प्यार अगर अम्बर है तो, मै क्षितिज बनना चाहूंगी ! प्यार अगर खूबसूरती है तो, मै आँखों में बसाना चाहूंगी! प्यार के लिए !!!!!! प्यार अगर कल्पना है तो, मै उसे सपनो  में सजोना  चाहूंगी! प्यार अगर कर्म है तो, मै लगन से करना चाहूंगी! प्यार अगर  हे ईश्वर तुम हो ! तो तुह्मे अपना बनाना चाहूंगी!!!!!! बस एक प्यार ही तो है जहा में   जिसके लिए ये जीवन  जीना चाहूंगी !

मुझे तो एक तारा बनाना है !!!!!!!

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मुझसे किसी ने सवाल किया, तुम खूबसूरत चाँद बनाना चाहोगी ? जबाब  दिल ने दिया - वो खूबसूरत चाँद ! जो अपने चौदह कलाओ से पूर्ण, सितारों में सबसे तेज चमकता है !! जिसे लाखो प्रेमी रात में देख आहे भरते है, और अपनी खूबसूरत प्रेमिका की याद में तड़पते है!! कवियो  ने जिसे अपनी कविता का शीर्षक बनाया, उसने भी तो  चांदनी बिखेर रात को खूबसूरत सजाया!! जिसे देख चकोर को चकोरी की याद आयी, और ब्याकुल कर गयी उसे अपनी तन्हाई!! फिर भी मै चाँद  ना बनाना चाहूंगी, किसी पृथ्वी के भ्रमण में जीवन ना गवाना  चाहूंगी. मुझे तो एक तारा बनाना है जो स्व प्रकाशित हो शांत रहता है. अपने में मग्न कुछ जंहा से खोया रहता है !!