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न जाने कहा कहा ढूढा और तू मुझ में ही मिला

बड़ा ही आनंदमय एहसास अपने अंदर के सुकू से परिचित होना ! हा मिलता है बड़े पापड़ बेलने के बाद ! पर सारे पापड़ कबूल इस एहसास के लिए ! योग इसलिए नहीं करना पड़ रहा की स्ट्रेस को ख़त्म करना है! संगीत इसलिए नहीं सुनना कि अपने अंदर के उथल पुथल से दूर होना है ! नृत्य  इसलिए नहीं करना कि अपने को पाने कि कोशिश करना !  जिसे वर्षो से ना जाने क्या क्या कर के पाने की कोशिश  कर रही थी और  नहीं कर पा रही थी.....एक झटके में सब बदल गया !!! मन का सुकून   ... सुरक्षा का एहसास !!!! जो खुद में ही मिला था पर मृग की तरह ना जाने कहा-कहा  और किसमे-किसमे ढूढने  का असफल प्रयास करती रही ! कभी माँ-पिता में, कभी साथी में तो कभी प्यार में, तो कभी-कभी जीवकोपार्जन के लिए नौकरी में भी!......पर सब बेकार .....! एक के बाद एक झटको ने मुझे मेरे करीब लता गया और मै नासमझ  उन झटको के लिए कुढ़ी ... दुखी हुई... हजार बार रोई... पर मुझे क्या पता था कि ये कड़ीय थी! जो टूट रही थी मेरे को मेरे से परिचय करने  के लिए... मेरे सुकू से साक्षत्कार  कराने के लिए जिसे पाने के लिए वर्षो से  तरसी थी !!!! सच  में ईश्वर बड़ा ही कारसाज है

आप औरो से बहुत अलग हो !!!

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आप से बात करने में थोरा डर लग रहा था क्यों कि आप औरो जैसी नहीं हो  ! आप बहुत ही इंटेलिजेंट  और स्ट्रिक्ट  दिखाती हो  !! रिप्लाय- कोई बात नहीं आप बात कर सकते है बताये क्या बात है ? देखा आप बहुत ही समझदार और सहज है ! आप ब्रेन विथ ब्यूटी हो जो आज के वक्त बमुश्किल से मिलते है! रिप्लाय - जी आजकल की लड़किया तो ऐसी है जो काम कम और बेकार की मौज परस्ती में ज्यदा है ! उन्हें तो काम से कोई मतलब नहीं बस किसी तरह पैसे बन जाये ! फैशन पर ना जाने कितना टाइम देती है ! रिप्लाय -  जी ठीक है तो मैम आप बताये की मै आपसे कब मिल सकता हू ! रिप्लाय - किस लिए ? आप से मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा ! आपसे मिल कर जो मुझे ख़ुशी  मिली  उसे मै बाया नहीं कर सकता ! आप बस एक मौका दे हम साथ में बैठकर डिनर  नहीं तो लंच तो ले ही सकते है ! आपके ५ मिनट के लिए मै कुछ भी कर सकता हू ! आपसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ! आप चाहे तो आप के लिए मै आपका शोपिंग  में भी साथ दे सकता हू ! आप को जो पसंद आये वो ले भी लेना ! रिप्लाय - जी  ! आगे तो हम मिल कर बड़े काम भी करेंगे! मेरी कंपनी को आप जैसे इमानदार और मेहनती लोगो की जर

आपकी जन्म भूमि की मिटटी को आपसे बहुत प्यार है ! !

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ये अंपने जन्म स्थली में बिताये हुए तीन दिन की उर्जा ही है जो फिर से आयी हुई चुनौतियों में भी मुझे शांति  और सकारात्मक सोच दे रहे है ! मेरी खुशिया इमोशन और प्यार से ना जाने कितनी बढ़  जाती है, कई दिनों तक उसका नशा मुझे जीवंत बनाये रखता है ! अब आप सोच रहे होंगे वो तीन दिन मैंने कहा व्यतीत किये! तो इस वर्ष फुल्ली मस्त दशहरा अपने गाँव में मनाया ! मेले का पैसा भी बटोरा और अपना बटुआ खाली भी किया क्यों की अब मै सिर्फ बेटी ही नहीं बुआ और मौसी   भी हू ! वो सब  जिया जो अब के बच्चो के लिए आश्चर्य  है क्यों की मेरी पीढ़ी और आजकी पीढ़ी में १० वर्ष कि  दूरी है ! और ये १० वर्ष की दूरी मात्र हमारे शहरो में ही हमे अपनों से दूर नहीं कर दिए है, बल्कि गाँव की सामुदायिकता को भी पलट कर रख दिया है! जरूरतों और प्रगतिशीलता की होड़ वहा भी लगी हुई है! इस लिए वो सब आपको मिलेगा जो आप शहर में जीते है! और वो सब नहीं मिलगा जो आप १० वर्ष  पहले पाते थे, जिनके लिए  बच्चो कि छुट्टियों होते ही भाग कर अपने गाँव जाते  थे ! हमारे दादा दादी ने हमें सारे रिश्तो का प्यार देने का ध्यान रखा और बड़े चाचा - छोटे चाचा और बड़ी बुआ- छ

शुभ दीपोत्सव

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दीप्त हो जीवन पथ.. पूर्ण हो सब मनोरथ....., श्रीकृपा से प्लावित हो.... सुयश धर्म और अर्थ.....! दीपमालिका के सुअवसर पर आपके उज्जवल पथ पर एक नव दीप हमारी शुभकामनाओ का!!!

Happy Birthday Song

तो मिलोगे ही !!!!

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बादल है तो सावन आएगी ही ! पतझड़  है तो बहार आएगी ही !! सागर है तो नदिया मिलेंगी ही ! बन है तो मोर नाचेंगे ही !! फूल है तो भवरे गूंजेगे  ही ! दीप जली तो पतंगे गिरेंगे ही !! माँ है तो ममता मिलेगी ही ! जीवन है तो भावनाए उमड़ेगी ही !! मन है तो विचार आएगा ही ! प्यार तुम हो तो मिलोगे ही !!!!

ग्राम पंचायत- मुर्गा-दारू पार्टी -यही तो है स्वराज!!!!!!!

आज सुबह-सुबह मेरी माँ का फोन आया कि वो नहीं लड़ेंगी ग्राम-प्रधान  का  चुनाव !! मुझे अच्छा नहीं लगा मेरी माँ का इस तरह लड़ाई  के पहले ही अपने  सपनो को ख़त्म करना ! मेरे पिता जी सरकारी नौकरी से  सेवानिवृत हो कर गाँव में रहना पसंद किये और वहा के लिए दोनों ने यथासंभव कार्य करना पसंद किये! पर मेरी सोच  "रंग दे बसंती" से प्रभवित है! अगर अच्छा चाहते हो तो पॉवर में आवों! चाहे वो ब्यवस्था की पहली कड़ी ही क्यों ना हो ! क्यों की सोच सभी रखते है और अपनी सोच को ट्रेन में, बस में,  चौपाल में,  अपने खाली समय में, दूसरो के सामने अच्छा बनने में अक्सर जाहिर करते रहते है! इससे कुछ नहीं होने वाला ! पर क्या करे मेरी माँ सारा जीवन दूसरो के लिए जीकर भी ग्राम प्रधान के लिए नहीं लड़ना चाहती!  वो गाँव   में फैले बीमारी -  मुर्गे और दारू की पार्टी में शामिल नहीं होना चाहती ! सुबह शाम के बीड़ी पार्टी उसे पसंद नहीं! कितना भी प्रचार कर लो विकास का! जागरूक  कर लो आगे के कार्य के लिए, पर चार दिन के झूठी खुशामदी में  लोग शौक से अपने ग्राम का ५ वर्ष दे देते है!  आपको पूरा माजरा सुनती हू... आज के  ग्राम पंचाय

Emotion per Atyachar: प्यार के लिए !!!!!!

प्यार के लिए !!!!!!

प्यार के लिए !!!!!!

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प्यार अगर मोती है तो, मै सीप बनना चाहूंगी ! प्यार अगर एहसास है तो, मै आभास करना चाहूंगी! प्यार अगर धड़कन है तो, मै हिय बनना चाहूंगी! प्यार अगर ज्योति है तो, मै दीप बनना चाहूंगी! प्यार अगर खुश्बू है तो, मै फूल बनना चाहूंगी! प्यार अगर समंदर है तो, मै गहराई छूना चाहूंगी! प्यार अगर अम्बर है तो, मै क्षितिज बनना चाहूंगी ! प्यार अगर खूबसूरती है तो, मै आँखों में बसाना चाहूंगी! प्यार के लिए !!!!!! प्यार अगर कल्पना है तो, मै उसे सपनो  में सजोना  चाहूंगी! प्यार अगर कर्म है तो, मै लगन से करना चाहूंगी! प्यार अगर  हे ईश्वर तुम हो ! तो तुह्मे अपना बनाना चाहूंगी!!!!!! बस एक प्यार ही तो है जहा में   जिसके लिए ये जीवन  जीना चाहूंगी !

मुझे तो एक तारा बनाना है !!!!!!!

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मुझसे किसी ने सवाल किया, तुम खूबसूरत चाँद बनाना चाहोगी ? जबाब  दिल ने दिया - वो खूबसूरत चाँद ! जो अपने चौदह कलाओ से पूर्ण, सितारों में सबसे तेज चमकता है !! जिसे लाखो प्रेमी रात में देख आहे भरते है, और अपनी खूबसूरत प्रेमिका की याद में तड़पते है!! कवियो  ने जिसे अपनी कविता का शीर्षक बनाया, उसने भी तो  चांदनी बिखेर रात को खूबसूरत सजाया!! जिसे देख चकोर को चकोरी की याद आयी, और ब्याकुल कर गयी उसे अपनी तन्हाई!! फिर भी मै चाँद  ना बनाना चाहूंगी, किसी पृथ्वी के भ्रमण में जीवन ना गवाना  चाहूंगी. मुझे तो एक तारा बनाना है जो स्व प्रकाशित हो शांत रहता है. अपने में मग्न कुछ जंहा से खोया रहता है !!

सावन की महक

बदली आई रिमझिम के संग , मेघ गरजे बिजली के संग , आम की डारी झूमे बौरो के संग , गेहू की बाली झूमे हरियाली के संग , बरखा आयी है प्रियतम के संग, प्रिय गए थे परदेश चुनरी आयी है उनके संग../

सपने अभी काफी है............./

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आज कुछ ऐसा हुआ, जैसे किसी ने मेरे अंतर्मन  को छुआ, आई एक ठंडी बयार, मन को दे गयी खुमार. कल्पना की ऊँची  उड़ान, छूने लगी क्षितिज आसमान. मन को लगा मंजिल यही है, जिंदगी  की खुशिया  यही से जुडी है. सारे सपने उसी के आने लगे, अंतर्मन  के तरंगो पर छाने लगे. हवाओ  में  उसी की खुशबू है, खिली-खिली धूप पर भी उसी का जादू है. ऊफ ये कैसी तूफान, जिसमे सब  ख़त्म करने की उफान. नहीं ये तो  एक मंजर है,  जो देता अपना होने का वहम है. कहा यहाँ अपना है कोई, जिसकी तलाश में पूरी रात ना सोई. सफ़र तो अभी बाकी है, सपने  अभी काफी है............./

मिडिया वाले उसमे रोमांच भरे या ना भरे!!! सईना नेहवाल की जीत भारत की जीत है!!!

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सईना नेहवाल ने जो जीत का इतिहास रचा उस पर मिडिया वालो को शायद खबर बनाना नहीं आ रहा. वो शायद इसलिए क्यों कि सईना में प्रतिभा ही प्रतिभा  है, ग्लैमर  तो है नहीं! और मिडिया या तो ग्लैमर  की भूखी है या फिर चटकारो  के लिए बैठी है. उनके लिए  क्रिकेट टी. आर . पी. के लिए धंधा है इसलिए एक मैच  में हार जाये तो और जीत जाये तो सारे चैनल उनके सर पर ताज पहनाने के लिए या उतारने के लिए बड़े जोश के साथ बैठे रहते है. वो भी सारे सारे दिन और कई दिन !!!!!!! हम देखना चाहे या ना चाहे पर मिडिया बेचारी क्या करे अब सब  बात टी. आर . पी. के दौड़ का है . सानिया मिर्जा अगर एक मैच जीत जाती है तो वाह-वही ही वाहवाही, उनकी खबरों में सुर्खिया ही सुर्खिया होती है , हार गयी तो खबर आयी गयी हो जाती है! सईना नेहवाल के पास सच्ची और लगन से भरपूर प्रतिभा है पर ग्लैमर  नहीं है इसलिए मिडिया को ये  सुर्खिया बटोरने  या फिर खबरों को जोरदार बनाने जैसा चमकदार नहीं लगता.  इसलिए वहा भी  सईना के जीत के जश्न से ज्यादा  विवेका के मातम की खबरे  भरी थी. अब  वहा भी ग्लैमर की बात थी ! जबकि सईना नेहवाल की  जीत पूरे भारत के लिए शानदार है.

सामुदायिकता मानवीयता से कभी भी बड़ी नहीं होती (Honor killing)

        आज हर न्यूज़ चैनल पर  Honor killing के खबर को किस्सों की तरह परोसा जा रहा है. समस्या गंभीर - मिडिया के लिए खबर. इन खबरों का परिणाम क्या? शायद कुछ दिनों में दूसरी Honor killing  की खबर सुनने को मल जाये. और  सभी राजनितिक पार्टिया चुप. शिला दीक्षित को कहते सुना की आज के समय में ऐसी घटनाओ  का होना आश्चर्य है. अब आप भी क्या करे आप को तो भारत का विकास दिल्ली  के मेट्रो के विकास की तरह नजर आता है. आप महानगर  में रहती है आपको भारत के गावो और समुदायों की सामाजिक समस्या से कहा सरोकार होगा? आपके नजर में महानगरो के  इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास से सारे भारत का विकास हो गया. आपको कहा पता होगा की इस  विकास की आंधी में सामाजिक विकास की धज्जिय उड़ रही है !! आप अमेरिका से बिसनेस करने के लिए तो आप बड़ी से बड़ी इमारत बनाने को तैयार है पर आप को कहा पता होता है आपके आपनो का क्या हाल हो रहा है ! युवा समाज को इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुबिधा आपने दे दी, पर उनको  अपने आप  को जीने के लिए सुबिधा दी ? भारत की सरकार धर्म - जाती और अन्य सामाजिक संस्थाओ में हस्तक्षेप करने में हमेशा बचाती रही है! इसका दो कारण समझ में

नारी जीवन

नारी इस जग में सबसे महान होती है, वो नदियों में गंगा सामान होती है. छोटी सी, चंचल सी खेलती है, पिता के घर हिमालय की गोदी में. दुनिया संसार के मोह से दूर, चंचल- अठखेलियो से पूर्ण. धीरे- धीरे वो बड़ी होती है किनारे पे आकर पृथ्वी को देखती है. सुनहरे ख्वाब सी मन में तरंग उठती है. वो दुनिया कितनी खुबसूरत है, वहा कोई प्यारा सा मूरत है. नई जोश आती है, कुछ होश जाती है. एक इच्छा, होगा कैसा   वो जहा, काश मै होती वहा. छोटी सी, नन्ही सी हो जाती है कुछ तरुण. और करती है  पृथ्वी का वरण. सुब कुछ नया सा, मन भी जावा सा. पत्थरो को तोड़ते  हुए, जमी को फोड़ते हुए. उमंग तरंग से, तुरंग प्रवाह में, चलती  नहीं  किसी के प्रभाव में. धरे - धीरे वो आगे बढने  लगी, स्वरुप में गंभीरता छाने लगी. क्षेत्र कुछ बिस्तृत होगया, लोगो का उससे उद्द्येश्य हो गया. सारी चंचलता गंभीर हो गयी, दूसरो के लिए जीना नियति बन गयी. कर्तब्य निभाते हुए, खुशिया देते हुए. इस दुनिया को जान गयी सुब कुछ पहचान गयी. ये पृथ्वी दूर से कितनी सुनहरी है, पर ये अनचाहे कर्तब्यो की दुपहरी है. अब बस एक ही  है आशा, महासागर म

मेरे समझ का सत्य

बदल रही है सारी दुनिया, लोग  कह रहे है. यही हमेशा सुनने में भी आ रहा है. दुनिया कैसे  बदल रही है? क्या धरती का आकर बदल रहा है? या फिर आसमान का रंग नीले  से लाल दिखाने लगा है? या कही लोगो का रंग रूप तो नहीं बदल गया है मेरे इस  धरती पर आने से पहले!! पर ऐसा कैसे हो सकता है!! मेरे दादा जी की बचपन की  फोटो तो मेरे ही तरह है!!!!! ऊह्ह समझ में नहीं आता कि आखिर क्या बदल रहा है!!! जहा तक मुझे समझ में आता है सब कुछ तो वैसा ही है जैस हजारो  वर्ष पहले था . किसी से पूछने पर जबाब मिलता है कि - बुद्धू ये नहीं हम बदल रहे है! मन में ख्याल आया - हम बदल रहे है !!!! हम कहा बदल रहे है!! हम तो वैसे ही है जैसे  वर्षो से रहे है!! फिर आखिर क्या बदल रहा है !!!! कुछ तो है जिसे या तो मै नहीं समझ पा रही या फिर मै समझाना ही नहीं चाहती!!! अक्सर माँ पिता जी से कहती है - अब ये आप का जमाना नहीं है!!!!! भाभी को भाई से कहते सुना है सुब कुछ बदल गया पर आप नहीं बदलेंगे!! पर मेरे लिए तो कुछ भी नहीं बदला!!! जिसे लोग बदलना बोलते है वो तो सुब कुछ 1000 वर्ष पहले भी था. कुछ आदर्श को जीते थे तो कुछ आपनी इच्छा को!!

इन्सान का खेल

जीवन  शतरंज का खेल समाज चौपाया गोटिया इन्सान ऊँचे से नीचे तक गोरे से काले तक खेल कुछ अच्छा कभी कभी लगता बुरा . काला  गोरे को मरता है गोरा काले को! इसमे कुछ नियम है. पालन नियति नहीं नियम है, इन्सान है कुछ हैवान इन्सान इन्सान को मरता है, ना कोई गोरा देखता है ना कला ना कोई बंधन है ना मुहब्बत, ना कोई नियम , ना कही मानवता बाते है परमार्थ की, पर है तो सिर्फ स्वार्थ. डॉ  विनीता सिंह वी. एस. टी . फाउन्डेशन

मै बहू ही नहीं बेटी भी हू !

कल एक बार फिर जिंदगी रोई और इंसानियत का तार तार हो गया . मन में आया कि ऐसा क्या करू कि आगे ऐसी खबर ना सुनने को मिले!! गाँव से खबर आयी कि एक बहू ने आपनी जिंदगी को रस्सी के हवाले कर दिया!!  घटना  से आहात होने पर पता चला कि वो चार वर्ष से अपने  वैवाहिक  जीवन में मात्र मजबूरियों और समझौतों को जी रही थी. क्यों कि उसका पति निहायत सीधा ( लोगो के अनुसार ) था और आर्थिक रूप से असक्षम था. जिसके कारण वो अपने बड़े भाई और भाभी के दुर्व्यवहार  से आपनी पत्नी को बचा न सका!  इस  बात की खबर पूरे गाँव वोलो को थी. क्यों किउसके मृत्यु पश्चात उसके अच्छे होने और उसके उपर होने वाले जुल्मो की हजार कहानिया आनी शुरू हो गयी.  ऐसा क्यों होता है कि कोई अपनी जिंदगी खत्म कर लेता है तो लोगो में उसके प्रति संवेदना जगती   है. उसके जीवित्  रहते क्यों नहीं ? आखिर क्या कारण है कि भारत में लड़किया आज भी घुटन  भरी और लाचार जिंदगी जीने को मजबूर है ( भारत महानगरो का नहीं छोटे शहरो और गाओं का देश है ) .  यहाँ मै एक सवाल उठाना  चाहूंगी कि क्या वो मात्र बहू थी किसी गाँव  या परिवार की? या फिर बेटी भी थी. अगर वो बेटी भी थी तो वो म

नई सुबह

कल शाम में पता चला की अभी फिर से एक लड़ाई शुरू हो गयी है, मेरे अपने आप की .  एक से थोड़ा रहत मिलता है तो दूसरा शुरू हो जाता है. क्यों ना हो! मैंने जो ७ वर्ष आपने जीवन को अपने इमोशन के साथ  जिया. जो अच्छा लगा वही किया. दिल से जिया कोई चालाकी नहीं की. जब चालाकी नहीं की तो आगे चल कर लड़ना तो पड़ेगा  ही. क्यों की अभी भी चालाकी नहीं सीखी. ऐसा नहीं है कि मेरे आस पास ऐसे लोग नहीं है . रोज एक नये चालाक और  एक नई चालाकी से परिचित होती हू , पर ये  है की मेरे बुद्धि को समझ ही नहीं आता. अब बड़ी उलझन है अब इस  दुनिया में जहा हर चीज सोच समझ के की जाती है,   वही  मै काम को तो दिमाक से सोचती हू पर करती बड़े दिल से हू. अब यही शायद गड़बर हो जाती है क्यों की दिमाक वाले लोगो को दिल की समझ तो होगी नहीं, क्यों की दिल की चीज प्यार भी दिमाक से ही वो करते है,  तो सारा का सारा अगर गुड़-गोबर नहीं होगा तो क्या होगा. मै आपना माथा नहीं फोदुंगी तो क्या करुँगी. अब जब मै ही जो इमोशन की दुहाई देने वाली कहू कि अरे मेरे इमोशन ने मुझे हर वक्त एक  नई चीज सीखने को दे  देता है जो मुझे अक्सर रास नहीं आती तो फिर गलत ही होगा.

बच्चो के मन को समझे और फिर अनुकूल रूप दे.

देश की समस्या और आम जीवन की समस्या से भी तेज एक ऐसी समस्या पुरे देश में फैलाती जा रही है जिसमे जिंदगी ही खत्म होने के कगार पर है. और हम कुछ भी नहीं कर रहे है. हर दिन एक जिंदगी अपने आप को ख़त्म कर रही है या ख़त्म कर दिया जा रहा है। ये क्या है ? क्या ये कोई आपस की दुश्मनी है या फिर आम अपराध की प्रवृति , नहीं ये वो कारन नहीं जिन से जिन्दिगीय यू ही समाप्त हो रही है, ये छात्रो में फैलने वाली वो मानसिक स्थिति है जिसमे वो किसी भी हालत में आपने आप को आगे रखना चाहते और इस में सफल ना होने पर जान लेने और देने, दोनों में उन्हें संकोच नहीं हो रहा!!!!! क्यों? समाज को किस तरफ जारहा है? किस भविष्य की तरफ इगित कर रहा है.? क्या ये छात्रो कि मानसिक बीमारी है या हम उन्हें दे रहे है ये मानसिकता? हा शायद हमी तो दे रहे है !!!!! हम उन्हें मात्र सफलता के मापदंड पर प्यार और स्वीकार कर रहे है. उनकी खुद की भावनाओ और जरुरत को नजर अंदाज कर मात्र अपनी उम्मीदों पर खरा होने के लिए तैयार कर रहे …………. आखिर कब तक ?????? और ये कब तक के परिणाम आने की शुरुरात हो चुकी है, "अपने आप को साबित ना कर पाने की नाउम्मीद

इमोशन के साथ एक पल

आप कैसे कह सकते कि आप इमोशन के बिना ही जीना पसंद करते है। आप अपने जीवन के किन्ही उलझनों के कारन अपने आप को इमोशनल न होने पर जोर देकर मात्र अपने आप को संतुष्ट करते है। क्यों कि आपके जीवन का प्रतिपल भाव से ही खुबसूरत बनता है और आपके जाने- अन्जाने वही आपको अच्छा भी लगता है। क्यों नह लगता ?? आप खुश होकर ईश्वर के बाद आपने आप को देखते है, नई सुबह - नई दिन के लिए। अपने आप को सबसे खुबसूरत होने के एहसास तक सवारते है। आप की सुबह कि चाय मात्र दिनचर्या नहीं होती आप उसे बड़े एहसास के साथ पीते है । कोई सोफे पर पैर पसार कर, कोई अपने प्यार के हाथो अलसाईआँखों से बिस्तर में , या फिर कोई टहलते हुए बाल्कनी से चिड़ियों कि चहचाहट और सूरज के फैलते रोशनी को चाय की चुस्कियो के साथ गल्प करते हुए। अगर दिन कि प्रथम चर्या में इमोशन के रंग को घोल देंने पर पल इतना खुबसूरत बन जाता है तो फिर दिन के हर पल में, हर कर्म में घोल दिया जाये तो दिन कितना सुहना और जीवन कितना रंगीन हो जायेगा। एक बार इसे सिर्फ एहसास ही ना करिए बल्कि इसे जी कर जिजिये, आपका हर पल सिख - नख तक पुलकित व आनंद से झंकृत होता रहेगा। नोट - आपके इमोश

इमोशन एक खुबसूरत एहसास

ये ब्लॉग उन लोगो के लिए है जो इमोशोन में विश्वाश रखते है/ ये सत्य है इंसान में इमोशन एक ऐसा भाव है जो उसे सुख और दुःख का अनुभूति देकर जीवन के महत्वपूर्ण होने का एहसास कराता है / पर आज भौतिकवादी दौर में अक्सर लोग इमोशोन को ख़त्म करने कि सलाह देते है कि ना रहेगा इमोशोन ना रहेगा सुख - दुःख / पर लोग कितना ही कोशिश कर ले जब तक इंसान है और जब तक ये श्रिष्टि है तब तक किसी ना किसी रूप में इमोशन रहेगा ही/और फिर क्यों ना हो बिना इमोशोन के जीवन का रूप ही क्या जिसमे सुख-दुःख , प्यार- बियोग, गुस्सा - शांति, ख़ुशी - आश्चर्य ना हो! इस यही तो इमोशोन के रंग है जो जीवन को रंगीनिया देकर खुबसूरत बनाते है, जीवन का एहसास देते है.ये तो बात रही इमोशोन की और ये ब्लॉग उन लोगो के लिए है जो इमोशोन में विश्वाश रखते है, पर कभी ना कभी उन्हें ऐसा लगता है कि उनके इमोशनल होने के कारन उन्हें इस प्रोफेशनल दुनिया में अक्सर ज्यादा दुःख मिलता है. और वो ये सोचने पर मजबूर हो जाते है कि क्या उनका इमोशनल होना उनके स्वयं के लिए अच्छा नहीं है. नहीं ये बिल्कुल सत्य नहीं है, बल्कि सत्य ये है कि लोग आपनी अवसरवादिता को छुपाने के लिए

जीने की कला

मेरे आस पास ऐसे लोग ज्यादा है जो आपने जीवन को जीने में विश्वाश करते है। हा लोगो के अनुसार उनके जीवन में समाज के अनुरूप स्थितिया अवश्य नहीं है, क्यों कि आस पास उनके वो लोग होते है जो अपने जीवन को जीने की जगह समाज को जीने में ख़ुशी रखते है। पर हमें बहुत अच्छा लगता है जब हमारे अंदर एक ख़ुशी की नदी प्रतिपल कलकल छलछल करती रहती है, जीवन की कोई भी स्थिति हो शांति बनी रहती है, जीवन से हमें तब भी उतना लगाव होता है, उतना ही प्यार रहता है जब स्थितिया हमारे अनुकूल नहीं होती है । इस स्थिति में वाही जी सकते है जो आपने आप को जीते है. पर मै उनलोगों की तरफ भी ध्यान देती हू, जो अपने जीवन को ना जीकर, समाज को जीने में आपना संपूर्ण जीवन लगा देते है, अपने और समाज के द्वन्द में ना जाने कितने चहरे को जीते है, और जो उनका जीवन है उसे ना जीकर ना जाने कितने जाने पहचाने लोगो के जीवन को जीते है। जब जन्म और जीवन के बाद अंत सत्य के करीब पहुचते है तो उन्हें लगता है की अरे ये क्या हुआ, मैने तो अभी अपने आप को जिया ही नहीं, पर उस समय कुछ भी नहीं किया जा सकता। हर मनुष्य ये भूलता जा रहा है की जब वो अपनी माँ के गर्भ से इस ध